सेक्स एजुकेशन : पेरेंट्स, टीचर्स, स्टूडेंट्स में इतनी झिझक क्यों !

सेक्स एजुकेशन : पेरेंट्स, टीचर्स, स्टूडेंट्स में इतनी झिझक क्यों !

कंडोम की बिक्री में बूम आने की मीडिया रिपोर्ट्स आम हैं। इन रिपोर्ट्स के मुताबिक नवरात्रि के दौरान खासकर गुजरात जैसे राज्यों में न सिर्फ कंडोम की बिक्री में 20 से 35 फीसदी तक की बढ़ोतरी होती है, बल्कि ‘अनप्रोटेक्टेड सेक्स’ के बाद प्रेग्नेंसी रोकने वाली इमर्जेंसी गोलियों की डिमांड भी बढ़ जाती है। एक्सपर्ट्स

कंडोम की बिक्री में बूम आने की मीडिया रिपोर्ट्स आम हैं। इन रिपोर्ट्स के मुताबिक नवरात्रि के दौरान खासकर गुजरात जैसे राज्यों में न सिर्फ कंडोम की बिक्री में 20 से 35 फीसदी तक की बढ़ोतरी होती है, बल्कि ‘अनप्रोटेक्टेड सेक्स’ के बाद प्रेग्नेंसी रोकने वाली इमर्जेंसी गोलियों की डिमांड भी बढ़ जाती है। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि त्योहार के बाद अबॉर्शन और ‘सेक्शुअली ट्रांसमीटेड इंफेक्शंस (STI)’ के मामलों में भी बढ़ोतरी देखने को मिलती है। यही नहीं, पेरेंट्स इन इवेंट्स में जाने वाले बच्चों की जासूसी तक करवाते हैं। घटनाएं बताती हैं कि भारत में तमाम बच्चों को किस तरह के खौफनाक हालात और दर्दनाक स्थितियों से गुजरना पड़ रहा है। इसकी पुष्टि भारत सरकार की एक स्टडी से भी होती है। तेरह राज्यों के सवा लाख बच्चों पर हुई एक स्टडी में चाइल्ड एब्यूज की भयावह तस्वीर सामने आ चुकी है। इसमें पता चला है कि देश के 66 फीसद बच्चे फिजिकल एब्यूज यानी मारपीट के शिकार हैं जबकि, 50 फीसद बच्चे यौन उत्पीड़न और 50 फीसद इमोशनल वायलेंस झेल रहे हैं।
सवाल उठते हैं कि क्या नवरात्रि के दौरान वाकई गर्भनिरोधकों की बिक्री बढ़ जाती है? ऐसे सात्विक पर्व से आखिर गर्भनिरोधकों का कैसे कोई संबंध हो सकता है? मीडिया रिपोर्ट्स से लेकर कंपनियां और एक्सपर्ट्स तक इस बात की पुष्टि करते हैं कि नवरात्रि के दौरान गर्भनिरोधकों की बिक्री बढ़ जाती है लेकिन, इसका संबंध नवरात्रि से नहीं, बल्कि इस दौरान होने वाले डांडिया जैसे इवेंट्स से है लेकिन, ऐसा सिर्फ डांडिया नाइट्स के दौरान ही नहीं, बल्कि वैलंटाइंस इवेंट्स से लेकर उन सारे आयोजनों में होता है, जहां बड़ी संख्या में युवा जुटते हैं। एक-दूसरे से घुलते-मिलते हैं और वासनात्मक संबंध में पड़ते हैं।
साइकेट्रिस्ट डॉ. राजीव मेहता कहते हैं कि ऐसा होना नेचुरल है। खाना और पानी की तरह ही सेक्स इंसान की बेसिक जरूरत है। जब अपोजिट जेंडर वाले युवा मिलते हैं, तो उनका एक-दूसरे की तरफ आकर्षित होना स्वाभाविक है। इस दौरान उनमें हॉर्मोंस का स्राव होता है। उनमें भी चाहत पैदा होती है। ऐसे में कुछ युवा संबंध भी बनाते हैं। इसे जितना दबाया जाएगा, यह उतना ही बढ़ेगा। यही वजह है कि 2016 में ब्राजील में हुए रियो ओलिंपिक्स गेम्स के दौरान वहां की खेल समिति ने खिलाड़ियों को 4,50,000 कंडोम बांटे थे। इसी तरह, 2010 में दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान खेल गांव में हर रोज 640 कंडोम इस्तेमाल किए गए थे। बाद में सफाई के दौरान जब जाम ड्रेनेज लाइन से हजारों यूज्ड कंडोम निकले तो भारत में इसकी काफी आलोचना हुई, लेकिन राष्ट्रमंडल खेल फेडरेशन के अधिकारियों ने ‘सेफ सेक्स प्रैक्टिस’ को बढ़ावा देने के लिए खिलाड़ियों की तारीफ की थी।
एक्सपर्ट बताते हैं कि इन तीनों मामलों को जो बात जोड़ती है, वह है सेक्स एजुकेशन लेकिन बच्चों की सेक्शुअल एब्यूज को लेकर समझ जीरो होती है। इसलिए यौन उत्पीड़न करने वाले उन्हें आसानी से शिकार बना लेते हैं। इवेंट्स के दौरान सही जानकारी न होने से कपल्स अनचाही प्रेग्नेंसी और बीमारियों का शिकार होते हैं। सेक्स एजुकेशन से बच्चों को पता होगा कि क्या करना है, क्या नहीं। प्रसिद्ध सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. प्रकाश कोठारी कहते हैं कि सेक्स एजुकेशन में यह नहीं सिखाया जाता कि बच्चा कैसे पदा करना है या फिर आनंद कैसे उठाना है। सेक्स एजुकेशन का मतलब सिर्फ रिप्रोडक्टिव एजुकेशन भी नहीं है। डॉ. कोठारी बताते हैं कि सेक्स एजुकेशन में फिजियोलॉजी है, रिलेशनशिप है, प्यार है। इसमें बच्चों को सही-गलत के बारे में सिखाया जाता है। उन्हें जिम्मेदारियां बताई जाती हैं जो उनके व्यक्तित्व को बेहतर बनाती हैं। इसमें उन्हें सही आचरण करना सिखाया जाता है, जिसके वह अभ्यस्त नहीं हैं।
सेक्स एजुकेशन में हेल्दी रिलेशनशिप के बारे में बताया जाता है। किशोरों को फिजिकल, इमोशनल और मेंटल हेल्थ की जानकारी दी जाती है। उनके शरीर में हो रहे बदलावों के बारे में बताया जाता है, ताकि बच्चे भटकें नहीं, जानकारी हासिल करने के लिए कोई गलत रास्ता न पकड़ें। डॉ. राजीव मेहता कहते हैं कि इसलिए सेक्स एजुकेशन देना जरूरी है, लेकिन इसके लिए सोसायटी में स्टिग्मा है। पेरेंट्स बच्चों से ऐसी चीजों के बारे में बात ही नहीं करना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि बच्चे बड़े होंगे तो उन्हें खुद पता चल जाएगा लेकिन, बहुत से ऐसे केस आते हैं, जिनमें शादी के बाद भी कपल्स को यह तक पता नहीं होता कि कंडोम कैसे यूज करना है।
भारत में समाज का तानाबाना ऐसा है कि यहां सेक्स एजुकेशन की बात आते ही सिर्फ पेरेंट्स और टीचर्स ही नहीं, स्टूडेंट्स भी इसके बारे में बात करने से झिझकते हैं.
डब्ल्यूएचओ की रिसर्च बताती है कि भले ही सेक्स एजुकेशन सुनकर लोग यह समझते हों कि इससे बच्चों में सेक्शुअल एक्टिविटीज बढ़ सकती हैं, लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। जिन बच्चों को सेक्स एजुकेशन दी गई, उनमें सेक्शुअल एक्टिविटीज देर से शुरू हुईं। साथ ही उनमें ‘सेफ सेक्स प्रैक्टिस’ के लिए भी जागरूकता ज्यादा दिखी। भारत में 10 से 19 साल के 25 करोड़ से ज्यादा किशोर हैं। इन्हें स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही सेक्स एजुकेशन देना बेहद जरूरी है। यह एक्सपेरिमेंट वाली उम्र है, जब बच्चों में ढेरों जिज्ञासाएं पनपती हैं। वह खुद भी अपनी सेक्शुअलिटी को एक्सप्लोर करना चाहते हैं। अगर उन्हें सही जानकारी न मिले, तो वह पॉर्न साइट्स, इंटरनेट और ऐसी दूसरी जगहों से जानकारी हासिल करने की कोशिश करते हैं। जहां रिलेशनशिप और शरीर के बारे में गलत जानकारियां होती हैं, जो उन्हें उकसाती हैं। ऐसे में किशोरों को एंग्जायटी, शर्मिंदगी और शोषण का सामना करना पड़ता है।
बच्चों के कम उम्र में और शादी से पहले संबंध बनाने की एक बड़ी वजह उन्हें सेक्स एजुकेशन न देना है। एक रिसर्च के मुताबिक हर 20 में से एक लड़की और 10 में से एक लड़का टीनेज में ही संबंध बना चुका होता है। इनमें से अधिकतर पहली बार अपने रोमांटिक पार्टनर के साथ इंटिमेट होते हैं। पोर्टल ‘टेलर एंड फ्रैंसिस ऑनलाइन’ पर मौजूद रिसर्च पेपर के मुताबिक इस दौरान कंडोम या प्रोटेक्शन के दूसरे विकल्प नहीं अपनाए जाते और लड़कियों पर इसके लिए दबाव बनाया जाता है। NCBI पर मौजूद एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 42 से 52 फीसदी युवा महसूस करते हैं कि उन्हें ‘सेक्स’ के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है। डॉ. राजीव ने बताया कि जिन बच्चों को सेक्स एजुकेशन नहीं मिलती, वे बड़े होने के बाद गलत धारणाओं के शिकार होते हैं। मानसिक उलझनों के चलते वे स्वप्न दोष, प्री-मैच्योर इजैकुलेशन, इरेक्टाइल डिस्फंक्शन जैसी समस्याओं की चपेट में आ जाते हैं।
‘पॉपुलेशन काउंसिल’ की रिसर्च के अनुसार 37 फीसदी युवकों और 45 फीसदी युवतियों को यह नहीं मालूम है कि पहली बार संबंध बनाने के दौरान भी प्रेग्नेंसी हो सकती है। यह हालात तब हैं, जब UNFPA अपनी एक रिपोर्ट में बता चुका है कि भारत में किशोरियों के प्रेग्नेंट होने की दर काफी ज्यादा है। ब्रिटेन में 1000 में से सिर्फ 24 लड़कियां 19 साल की होने से पहले प्रेग्नेंट होती हैं, अमेरिका में यह संख्या 42 है। लेकिन, भारत में 1000 में से 62 लड़कियां 19वें जन्मदिन से पहले प्रेग्नेंट हो जाती हैं। ऐसे ही एक मामले की सुनवाई करते हुए इसी साल जुलाई में केरल हाई कोर्ट ने बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने की जरूरत बताई थी। एक 13 साल की बच्ची का उसके ही भाई ने रेप किया था। कोर्ट ने 30 सप्ताह की प्रेग्नेंसी होने के बाद बच्ची का अबॉर्शन कराने की इजाजत दी। इस दौरान यह भी कहा कि इंटरनेट पर मौजूद पोर्नोग्राफिक कंटेंट बच्चों को बहका रहा है।
अब इंटरनेट पर भी बच्चों को शिकंजे में फंसाया जा रहा है। उन्हें ऑनलाइन तरह-तरह का लालच देकर और शादी का वादा कर जाल में फंसाया जाता है और सेक्शुअल रिलेशन बनाए जाते हैं। ऐसे मामलों का सबसे ज्यादा शिकार 16 से 18 साल की लड़कियां बनती हैं। इस ऐज ग्रुप में सेक्शुअल एब्यूज के 99 फीसदी मामलों में लड़कियां ही विक्टिम होती हैं। जाहिर है इन पीड़ित लड़कियों को भी सेक्स एजुकेशन के बारे में शायद ही जानकारी रही हो। पेरेंट्स से लेकर टीचर्स और पॉलिसी मेकर्स तक गलत धारणाओं के शिकार हैं। जिसके कारण जब भी सेक्स एजुकेशन देने की बात शुरू होती है, तो यह कहा जाने लगता है कि इससे बच्चे भटक जाएंगे। वे एक्सपेरिमेंट करने लगेंगे। संस्कृति पर बुरा असर पड़ेगा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है एडोलसेंस एजुकेशन प्रोग्राम यानी AEP, जिसे कई राज्यों ने बैन कर दिया था।
साल 2005 में शिक्षा मंत्रालय ने पहली से 12वीं तक के बच्चों को सेक्स एजुकेशन देने के लिए एडोलसेंस एजुकेशन प्रोग्राम (AEP) लॉन्च किया। इसके खिलाफ कई राज्यों में विरोध-प्रदर्शन होने लगे। 2 साल के अंदर 13 राज्यों में इसपर बैन लगा दिया गया। महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल, उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, झारखंड और ओडिशा में इसका खूब विरोध हुआ। बच्चों को रिप्रोडक्टिव सिस्टम को समझाने के लिए बनाए गए ग्रैफिक्स के साथ ही कंडोम, इंटरकोर्स और मास्टरबेशन जैसे शब्दों को आपत्तिजनक बताया गया। नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (NACO) ने यह कॉन्टेंट सिलेबस से हटा दिया, उसके बावजूद कई राज्यों में बैन नहीं हटा। IPPF के साउथ एशिया रीजनल ऑफिस में टेक्निकल एडवाइजर (यूथ एंड एडोलसेंट सर्विसेज) श्वेता श्रीधर बताती हैं कि देश के 6 राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में अभी भी AEP प्रतिबंधित है। AEP के लिए लॉन्च की गई वेबसाइट aeparc.ncert.org.in पर जाने पर पता चलता है कि इसे कई साल से अपडेट ही नहीं किया गया है। इसके कई सेक्शन खाली पड़े हैं। इस वेबसाइट से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिलती कि देश में इस प्रोग्राम की वर्तमान स्थिति क्या है।
श्वेता श्रीधर बताती हैं कि स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय ने 8वीं से 12वीं तक के स्टूडेंट्स के लिए राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (RKSK) और आयुष्मान भारत जैसे प्रोग्राम शुरू किए। लेकिन, इनका दायरा बच्चों को सेक्शुअल एब्यूज से बचाने, उन्हें रिस्की बिहेवियर के बारे में बताने और HIV-AIDS जैसी संक्रामक बीमारियों को नियंत्रित करने जैसे मुद्दों तक सीमित है। बाकी यह टीचर्स पर निर्भर करता है कि बच्चों को सेक्स एजुकेशन के बारे में पढ़ाने में खुद कितना कंफर्टेबल हैं, रूटीन सिलेबस पूरा करने के बाद इसके लिए कितना समय बचता है।
आमतौर पर तो क्लास में रिप्रोडक्टिव सिस्टम से जुड़े चैप्टर ही छोड़ दिए जाते हैं या बच्चों से कह दिया जाता है कि खुद से पढ़ लें। इस बारे में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय में तैनात एक काउंसलर से बात की, तो उन्होंने बताया कि अधिकतर स्कूलों में सेक्स एजुकेशन की कोई जानकारी नहीं दी जाती। अगर टीचर चाहते हैं, तो वह बच्चों को रिप्रोडक्टिव सिस्टम और HIV के बारे में बता देते हैं। यही वजह है कि इतने सालों से इतने प्रोग्राम चलाने के बावजूद अभी भी बच्चों को सेक्स एजुकेशन नहीं मिल पा रही है।
जिन राज्यों में सेक्स एजुकेशन का सबसे ज्यादा विरोध हुआ, बच्चों और महिलाओं के यौन शोषण की घटनाएं भी सबसे ज्यादा वहीं हो रही हैं। NCRB की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार देश में रेप की सबसे ज्यादा 6,337 वारदात राजस्थान में हुईं। इसके बाद मध्य प्रदेश में 2,947, यूपी में 2845 और महाराष्ट्र में 2,496 रेप के मामले दर्ज हुए। इसी तरह, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और राजस्थान देश के उन टॉप-6 राज्यों की लिस्ट में हैं, जहां बच्चों के खिलाफ कुल क्राइम सबसे ज्यादा दर्ज किया गया। बच्चों के यौन उत्पीड़न (POCSO) के मामले में भी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश देश के टॉप-5 राज्यों में शामिल हैं. सेक्स एजुकेशन का विरोध करने वाले राज्यों में ही कंडोम, कॉन्ट्रासेप्टिव से लेकर सेक्स टॉयज और दूसरे सेक्शुअल वेलनेस प्रोडक्टस की बिक्री सबसे ज्यादा होती है। सेक्शुअल वेलनेस प्रोडक्ट्स बेचने वाली कंपनी दैट्स पर्सनल की रिपोर्ट के अनुसार नवरात्रि में गुजरात में सेक्शुअल वेलनेस प्रोडक्ट्स की डिमांड काफी बढ़ जाती है।
महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा सेक्शुअल वेलनेस प्रोडक्ट्स खरीदने वाले देश के टॉप-10 राज्यों की लिस्ट में शामिल हैं। सबसे ज्यादा फीमेल बायर्स कर्नाटक और तेलंगाना की हैं। वैलंटाइंस के दौरान ये प्रोडक्ट्स तोहफे के तौर पर भी खरीदे जाते हैं। मुंबई, पुणे, बेंगलुरु, चेन्नई, अहमदाबाद जैसी मेट्रो सिटी के साथ ही लखनऊ, जयपुर, इंदौर, नोएडा, कोच्चि के लोग सबसे ज्यादा सेक्शुअल वेलनेस प्रोडक्ट खरीदते हैं। सबसे ज्यादा मसाजर कर्नाटक वाले खरीदते हैं, तो फ्लेवर्ड कंडोम की डिमांड लखनऊ में सबसे ज्यादा है। वहीं, वड़ोदरा सेक्साइटमेंट प्रोडक्ट्स जैसे कि लॉन्जरी की बिक्री सबसे ज्यादा होती है। इससे पता चलता है कि भले ही कुछ लोग सेक्स एजुकेशन का विरोध जता रहे हों, लेकिन आम लोगों को निजी जिंदगी में इससे इतनी झिझक नहीं है।
अधिकतर पेरेंट्स चाहते हैं कि स्कूलों में बच्चों को नैतिक शिक्षा दी जाए। साथ ही उन्हें प्यूबर्टी के दौरान शरीर में होने वाले बदलावों के बारे में भी बताया जाए। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की 2005-06 की रिपोर्ट के अनुसार करीब आधी महिलाओं ने कहा कि लड़कियों को स्कूल में कॉन्ट्रासेप्टिव के बारे में बताया जाना चाहिए, जबकि दो तिहाई पुरुषों ने इससे सहमति जताई। वहीं, 60 फीसदी से ज्यादा पुरुषों ने बच्चों को स्कूल में सेक्स और सेक्शुअल बिहेवियर के बारे में पढ़ाने की बात कही, जबकि इसके लिए सहमति जताने वाली महिलाओं की संख्या आधी से भी कम रही। 1994 में हुई ‘यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन पॉपुलेशन एंड डेवलपमेंट (ICPD)’ में भारत भी शामिल हुआ था। ICPD के मुताबिक किशोरों और युवाओं को सेक्स एजुकेशन देना जरूरी है। यूनाइटेड नेशंस ह्यूमन राइट्स काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार सेक्स एजुकेशन मुहैया न कराना मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
साइकेस्ट्रिस्ट डॉ. राजीव मेहता कहते हैं कि छोटे बच्चों को गुड टच और बैड टच के बारे में बताना चाहिए। बच्चे को सही-गलत पता होगा, तो वह घर पर इसकी जानकारी दे सकेगा और खुद को भी बचा सकेगा। 3 से 5 साल तक के बच्चों को ‘गुड टच’, ‘Okay टच’ और ‘बैड टच’ के बारे में जरूर बताएं। उन्हें यह भी बताएं कि शरीर के वे कौन से हिस्से हैं, जिन्हें सिर्फ मां ही नहलाते समय छू सकती है। 10 से 13 साल के बच्चों को बॉडी पार्ट्स के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। उन्हें लड़के और लड़कियों के शरीर में अंतर मालूम होना चाहिए। प्राइवेसी और प्राइवेट पार्ट्स का अर्थ पता होना चाहिए। किशोरों को शरीर, सेक्शुअल इंटरकोर्स, प्रेग्नेंसी, हेल्दी रिलेशनशिप और सेक्शुअल वायलेंस के बारे में जानकारी दें। जरूरी है कि यह जानकारी घर में पेरेंट्स से मिले और स्कूलों में भी प्रशिक्षित टीचर्स बच्चों को बताएं। डॉ. प्रकाश कोठारी कहते हैं कि पोर्न खराब है कह देना भर काफी नहीं है। फिक्र मत करो कह देने से फिक्र कम नहीं होती। बच्चों को सिखाना होगा कि वे अपनी एनर्जी, अपनी भावनाओं को कैसे चैनलाइज करें। ऐसा होगा, तो बच्चों को पता होगा कि क्या नहीं करना है और क्या करने से कौन से बुरे नतीजे होंगे। उन्हें पता होगा कि किसी अनजान से संबंध बनाने के क्या खतरे होते हैं। बच्चों को सेक्स एजुकेशन के बारे में सबसे अच्छी तरह से पेरेंट्स बता सकते हैं लेकिन, पेरेंट्स को खुद सही जानकारी नहीं होती।

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