संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश कहते हैं कि वैश्विक समुदाय को एक सुर में कहना होगा, “स्कूलों पर हमले बन्द हों”. शिक्षा हासिल करने से न केवल ज्ञान और कौशल बढ़ते हैं, बल्कि ज़िन्दगियाँ बदलने के साथ-साथ, लोगों, समुदायों और समाजों के विकास का रास्ता खुलता है, “स्कूल, सीखने, सुरक्षा और शान्ति के स्थान होने
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश कहते हैं कि वैश्विक समुदाय को एक सुर में कहना होगा, “स्कूलों पर हमले बन्द हों”. शिक्षा हासिल करने से न केवल ज्ञान और कौशल बढ़ते हैं, बल्कि ज़िन्दगियाँ बदलने के साथ-साथ, लोगों, समुदायों और समाजों के विकास का रास्ता खुलता है, “स्कूल, सीखने, सुरक्षा और शान्ति के स्थान होने चाहिये. मगर इसके बावजूद, साल दर साल देखा जाता है कि इस बुनियादी अधिकार पर, लगातार हमले हो रहे हैं. लोग ख़ुद को किसी कक्षा में शिक्षा हासिल करने वाला बच्चा होने की कल्पना करें, और एक ऐसा स्थान जहाँ एक शिक्षक, अगली पीढ़ी के मस्तिष्कों को आकार देने की कोशिश करते हैं. अब कल्पना करें कि संघर्षों के कारण कितनी भयावह मुश्किलें व कठिनाइयाँ, सीखने के प्रयासों पर क़हर बरपाती हैं.
उन्होंने एक ऐसी तस्वीर पेश करने की कोशिश की, जहाँ स्कूल हमलों का निशाना बनाए जाते हैं, उन्हें तबाह किया जाता है या फिर उनका इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिये किया जाता है. और बच्चों को हिंसा, शोषण, यहाँ तक कि युद्ध में भाग लेने के लिये भर्ती किये जाने के भी जोखिम का सामना करना पड़ता है – केवल इसलिये कि वो शिक्षा हासिल करना चाहते हैं. यूएन महासचिव ‘शिक्षा को हमलों से बचाने के लिये वैश्विक गठबन्धन’ द्वारा जारी आँकड़ों का हवाला देते हुए बताते हैं कि वर्ष 2015 और 2020 के दौरान, शिक्षा ठिकानों पर हमलों, या फिर शिक्षा सुविधाओं का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिये किये जाने की 13 हज़ार से भी ज़्यादा रिपोर्टें मिली हैं. और ऐसे मामले पूरी दुनिया में देखने को मिल रहे हैं.
वह कहते हैं कि ये जोखिम कम होता नज़र नहीं आ रहा है. अफ़ग़ानिस्तान में ख़तरनाक घटनाक्रम ने हमें बहुत स्पष्ट रूप से दिखा भी दिया है. ये केवल किसी पन्ने पर लिखे अक्षर भर नहीं हैं, बल्कि लाखों-करोड़ों लोगों की निजी ज़िन्दगियाँ और निजी भविष्य हैं. ये नुक़सान असीम है. संयुक्त राष्ट्र ने उन तमाम देशों से, ‘सुरक्षित स्कूल घोषणा-पत्र’ को मंज़ूरी देने का आहवान किया है जिन्होंने अभी तक ऐसा नहीं किया है. ये घोषणा-पत्र, छात्रों, अध्यापकों, स्कूलों और विश्वविद्यालयों को, सशस्त्र संघर्षों के भयावह प्रभावों से बचाने के लिये, एक अन्तर-सरकारी राजनैतिक संकल्प है. इस घोषणा-पत्र को अभी तक 111 देश मंज़ूरी दे चुके हैं. इसमें स्कूलों और सीखने वालों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये, देशों की सरकारों को सटीक उपाय सुझाए गए हैं.
यूएन प्रमुख कहते हैं कि हम देशों से, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत अपने संकल्पों से भी आगे बढ़कर कार्रवाई करने और ऐसी राष्ट्रीय नीतियाँ व क़ानून बनाने और लागू करने का आहवान करते हैं, जिनके ज़रिये स्कूलों और सीखने वालों की हिफ़ाज़त सुनिश्चित हो. उन्होंने स्कूलों पर हमलों को अस्वीकार्य और दण्डनीय बनाकर, उनके लिये ज़िम्मेदार तत्वों को क़ानून के शिकंजे में पहुँचाने की ज़रूरत को भी रेखांकित किया, और कहा कि ऐसा, पूरी दनिया में हर देश के दायरे में होना चाहिये. वह संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन – यूनेस्को और यूएन बाल कोष – यूनीसेफ़ को वैश्विक समर्थन व सहायता बढ़ाए जाने का भी आह्वान करते हैं.
गौरतलब है कि ये संगठन, दुनिया के कुछ बेहद ख़तरनाक स्थानों पर, शिक्षा के स्थलों, छात्रों, अध्यापकों और स्कूलों की हिफ़ाज़त सुनिश्चित करने के लिये रात-दिन अथक काम कर रहे हैं. यूएन प्रमुख कहते हैं कि वैसे तो हाल के वर्षों में कुछ सफलताएँ भी हासिल हुई हैं, मगर सभी के लिये, शिक्षा के अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये, अभी बहुत कुछ करने की ज़रूरत है. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव होने के नाते, मैं इस महत्वपूर्ण मुहिम में आपके साथ खड़ा होने और आगे बढ़ने में गौर्वान्वित महसूस करता हूँ. क्योंकि जब हम शिक्षा की हिफ़ाज़त करते हैं तो हम भविष्य को सहेजते हैं.
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