गुरुदत्त, वहीदा रहमान की उस मोहब्बत का अंजाम क्या हुआ?

गुरुदत्त, वहीदा रहमान की उस मोहब्बत का अंजाम क्या हुआ?

सफलता और असफलता एक सिक्के के दो पहलू हैं. हमारी कोशिशों, परिश्रम और मेहनत पर निर्भर करता है कि हम कितना सफल और कितना असफल हो सकते हैं. अपने काम के प्रति लगन और सकारात्मक दृष्टिकोण विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ा सकते हैं. इसलिए असफलता से कभी निराश नहीं होना चाहिए,

सफलता और असफलता एक सिक्के के दो पहलू हैं. हमारी कोशिशों, परिश्रम और मेहनत पर निर्भर करता है कि हम कितना सफल और कितना असफल हो सकते हैं. अपने काम के प्रति लगन और सकारात्मक दृष्टिकोण विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ा सकते हैं. इसलिए असफलता से कभी निराश नहीं होना चाहिए, लगातार कोशिश करनी चाहिए. ये बातें सच और सर्वमान्य हैं, लेकिन दिग्गज फिल्मकार, निर्देशक और अभिनेता गुरु दत्त के शब्दकोश में शायद असफलता जैसे शब्दों के लिए कोई जगह नहीं थी. उनके अजीज दोस्त देवानंद भी कहते थे, ‘गुरु, असफलता को बर्दाश्त नहीं कर पाते थे’. उनकी इस कमी ने उन्हें जीते जी बहुत दर्द दिया था.
गुरु दत्त को बॉलीवुड का पहला शोमैन कहा जाता है. उनको भारत का ‘ऑर्सन वेल्स’ भी कहा जाता है, जो अमेरिका के मशहूर अभिनेता, लेखक, निर्देशक और निर्माता थे. गुरु के बारे में कहा जाता है कि वो रिजेक्शन नहीं सह पाते थे. पहला रिजेक्शन उनको उनकी मोहब्बत में मिला. वो वहीदा रहमान से बहुत प्यार करते थे. उनके लिए अपना पहला प्यार, पत्नी और परिवार तक छोड़ दिया. लेकिन अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने की लालसा में वहीदा उनको छोड़ गईं. गुरु बुरी तरह टूट गए. नशे के आगोश में रहने लगे. इसी बीच फिल्म ‘कागज के फूल’ को दर्शकों ने रिजेक्ट कर दिया. गुरु को बहुत ज्यादा आर्थिक नुकसान हुआ. इन दोनों रिजेक्शन ने उन्हें मौत के मुंह में ढकेल दिया.
गुरु दत्त एक अभिनेता, लेखक, निर्देशक और निर्माता थे, जिनकी प्रतिभा का मुकाबला कोई नहीं कर सकता है. गुरु दत्त का हिंदी सिनेमा में सबसे अलहदा मुकाम है. वह एक ठहरे हुए इंसान और सुलझे हुए फिल्मकार थे. एक कॉमर्शियल मूवी को एक आर्ट मूवी की तरह पेश करते थे. उस समय उनकी फिल्मों की सफलता देखते ही बनती थी. ‘कागज के फूल’, ‘चौदहवी का चांद’, ‘साहिब, बीवी और गुलाम’, ‘बाजी’, ‘आर-पार’, ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ और ‘सीआईडी’ जैसी एक से बढ़कर एक फिल्में उनकी सफलता की कहानी कहती हैं. गुरु दत्त एक महान फिल्मकार थे. वास्तविक जिंदगी के किरदारों को वो इतनी सहजता से रुपहले पर्दे पर पेश कर देते थे कि देखने वाले भी दांतों तले उंगलियां दबा लेते थे. यही वजह है कि गुरु की फिल्मों का हिंदी सिनेमा के इतिहास में आज भी अलग मुकाम है.
एक बार की बात है, वो कोलकाता गए थे. इस शहर से उनको बहुत प्यार था. उनका बचपन यहां गुज़रा था. कोलकाता जाकर वो गोलगप्पे और विक्टोरिया मेमोरियल के लॉन में बैठकर झाल मुड़ी ज़रूर खाते थे. एक बार ऐसे ही झाल मुड़ी खा रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि चारखाने की लुंगी और एक अजीब सी टोपी पहने, हाथ में तेल की बोतल लिए हुए एक मालिश वाला आवाज़ लगा रहा है. उसने गुरु को बहुत प्रभावित किया. वहीं से एक किरदार ने आकार ले लिया. इस किरदार के लिए ख़ास तौर से एक गाना लिखवाया गया- ‘सर जो तेरा चकराए या दिल डूबा जाए, आजा प्यारे पास हमारे काहे घबराए…’ इस गाने को मशहूर कॉमेडियन जॉनी वॉकर पर फ़िल्माया गया था.
इसी तरह फिल्म ‘प्यासा’ के शुरुआती दिनों में यह फैसला लिया गया था कि फिल्म की कहानी कोठे पर आधारित होगी. लेकिन बस एक दिक्कत थी कि गुरु दत्त कभी कोठे पर नहीं गए थे. लेकिन जब कोठे पर गए तो वहां का मंजर देखकर हैरान रह गए. कोठे पर नाचने वाली एक लड़की गर्भवती दिख रही थी, फिर भी लोग उसे नचाए जा रहे थे. गुरु दत्त ये देखकर उठे और अपने दोस्तों से वहां से चलने के लिए कहा. नोटों की एक मोटी गड्डी जिसमें कम से कम हजार रुपए रहे होंगे, उसे वहां रखकर बाहर निकल आए. इस घटना के बाद दत्त ने कहा कि मुझे साहिर के गाने के लिए चकले का सीन मिल गया और वह गाना था, ‘जिन्हें नाज है हिन्द पर हो कहां है.’
‘प्यासा’ भी वो फिल्म है, जिसमें काम करने के दौरान गुरु दत्त और वहीदा रहमान एक-दूसरे के करीब आए. हालांकि, इससे पहले गुरु की शादी गीता रॉय हो चुकी थी. फिल्म ‘बागी’ के सेट पर उस समय की मशहूर प्लेबैक सिंगर गीता रॉय और गुरु दत्त की पहली मुलाकात हुई थी. दोनों में प्यारा हुआ और अफेयर के बाद शादी कर ली. तीन बच्चे भी हुए. इसी बीच गुरु दत्त हैदराबाद में एक फिल्म समारोह में पहुंचे थे. वहां उनकी नजर वहीदा रहमान पर पड़ी. वह तेलुगु और तमिल फिल्मों में काम किया करती थीं. गुरुदत्त ने उनके पास जाकर नाम पूछा, तो उन्होंने का कहा, ‘मेरा नाम वहीदा है’. गुरु बोले, ‘तुम मुस्लिम हो, फिर तो तुम्हें उर्दू और हिंदी दोनों आती होगी’.
इस पर वहीदा रहमान ने बताया कि उनको हिंदी और उर्दू दोनों अच्छे से आती है. वह हिंदी फिल्मों में काम करना चाहती हैं, लेकिन अभी तक कोई ऑफर नहीं मिला है. इसके बाद गुरुदत्त ने उनको अपकमिंग फिल्म ‘सीआईडी’ में काम करने के लिए ऑफर दे दिया. उनको इस फिल्म के लिए एक नए चेहरे की तलाश भी थी. इस फिल्म के बाद ही वहीदा को लेकर उन्होंने फिल्म ‘प्यासा’ बनाई थी, जिसमें दोनों को जोड़ी खूब सराही गई थी. ‘प्यासा’ दुनिया में अब तक बनी टॉप 100 फिल्मों में से एक है. फिल्म के साथ ही दोनों के बीच इश्क भी परवान चढ़ने लगा. यह बात जब उनकी पत्नी गीता को पता चली, तो दोनों के बीच खूब झगड़ा हुआ. दोनों अलग रहने लगे.
इधर, वहीदा रहमान को भी ऐसा लगा कि वो सिर्फ गुरु दत्त की बनकर रह गई हैं. उन्होंने गुरु की छाया से निकलकर खुद की अलग पहचान बनाने के बारे में सोचा और हमेशा के लिए उनसे दूर हो गईं. यहां तक कि गुरु दत्त के साथ उनकी आखिरी फिल्म ‘कागज के फूल’ के अंतिम सीन के शूट भी नहीं किए. फिल्म तो किसी तरह पूरी करके रिलीज कर दी गई, लेकिन फ्लॉप हो गई. एक तरह फिल्म का फ्लॉप होना, दूसरी तरफ माशूका का साथ छोड़ जाना, गुरु को बर्दाश्त नहीं हो पाया. वो जमकर शराब और सिगरेट पीने लगे. हर वक्त नशे की आगोश में रहना उनकी आदत बन गई. पत्नी और उसके बाद प्रेमिका से दूरी ने उनको बुरी तरह तोड़ दिय़ा था.
9 अक्टूबर 1964 को गुरु दत्त अपने भाई देवी के साथ फिल्म ‘बहारें फिर भी आएंगी’ के सेट पर थे. उस वक्त एकदम स्वस्थ लग रहे थे. एक लीड स्टार ने शूट को कैंसिल कर दिया, तो थोड़े नाराज हुए, क्योंकि उन्हें इसकी वजह से अपना अगले दिन का प्लान बदलना पड़ा. इसके बाद दोनों भाई सेट से शॉपिंग के लिए कोलाबा गए. फिर शाम को पेडेर रोड पर स्थित गुरु के अपार्टमेंट में वापस आए. वहां वह अकेले रहते थे. उनके साथ बस एक नौकर रहता था. हमेशा की तरह उस दिन भी गुरु ने शराब पिया. उसके बाद देर रात अपनी पत्नी को फोन करके बच्ची से मिलने के लिए कहा, लेकिन गीता ने उन्हें मना कर दिया, क्योंकि रात बहुत हो चुकी थी.
गीता की इस बात से नाराज गुरु दत्त इतने परेशान हो गए कि उन्होंने पत्नी से कहा, ‘बेटी को भेज दो वरना मेरा मरा मुंह देखोगी’. इसके बाद उन्होंने अपने भाई देवी को वहां से भेज दिया. देर रात शराब पीने के बाद खाने खाए और सोने चल गए. इसके बाद अगले दिन 10 अक्टूबर को अपने कमरे में मृत पाए गए. इस घटना ने पूरी फिल्म इंडस्ट्री को झकझोर दिया. किसी विश्वास नहीं हो रहा था कि महज 39 साल की उम्र में उनकी मौत कैसे हो सकती है. कोई इसे खुदकुशी बताता है, तो कोई ड्रग्स का ओवरडोज बताता है. कहते हैं कि उन्होंने शराब के साथ स्लिपिंग पिल्स ले लिया था, जिससे उनकी मौत हो गई. उनकी बहन ललिता लाजमी खुदकुशी नहीं मानती हैं.
गुरु दत्त छोटी बहन ललिता लाजमी (दिवंगत फिल्म निर्माता कल्पना लाजमी की मां) ने एक बार बताया था, ‘गुरु की पत्नी गीता के साथ समस्या यह थी कि वह बेहद पजेसिव महिला थी. हर बात पर शक करना उनकी आदत थी, जिससे दोनों के बीच आए दिन झगड़ा हुआ करता था. एक निर्देशक/अभिनेता जैसा रचनात्मक व्यक्ति कई अभिनेत्रियों के साथ काम करता है. यह उसका व्यवसाय है. ऐसे में परिवार और पत्नी को उसके उपर भरोसा करने की जरूरत होती है. लेकिन गीता गुरु के साथ काम करने वाली हर अभिनेत्री पर शक करती थीं. उन दोनों के बीच जब भी झगड़ा होता, तो वो बच्चों को लेकर अपने मायके चली जाती थीं. बच्चों के जाने से गुरु डिप्रेशन में चले जाते थे.
बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरु दत्त और वहीदा रहमान की मोहब्बत का अंजाम क्या हुआ था? लेखक सत्या सरन ने अपनी किताब ‘गुरु दत्त के साथ एक दशक’ में इसके बारे में लिखा है. बर्लिन फिल्म समारोह के लिए गुरु दत्त की फिल्म ‘साहिब बीबी और गुलाम’ आधिकारिक तौर पर नामांकित की गई थी. इस समारोह में वहीदा रहमान और गुरु दत्त दोनों गए थे, लेकिन दोनों में कोई बात नहीं हुई. वहीदा को गुरु न जाने कब का अपनी नजरों से उतार चुके थे. समारोह के खत्म होने के बाद वहीदा लंदन चली गईं. वहां गुरु के दोस्त फिल्म निर्देशक अबरार अल्वी ने वहीदा को एक बड़े व्यापारी मिलवा दिया. इससे गुरु नाराज हो गए. वो नहीं चाहते थे कि वाहिदा उनके किसी जानने वालों से मिले.
अबरार अल्वी ने गुरु दत्त के बहुत अजीज दोस्त थे. उन्होंने उनके ऊपर एक किताब भी लिखी है, जिसका नाम ‘टेन ईयर्स विद गुरु दत्त’ है. इसमें उन्होंने गुरु दत्त के साथ बिताए गए अपने 10 साल के सफर का जिक्र किया है. उनकी मौत के समय की कहानी भी इसमें लिखी गई है. अबरार ने अपनी किताब में लिखा है, ”गुरु दत्त कितना भी नशा कर लें नियंत्रण नहीं खोते थे. उन्होंने अपनी मौत वाली रात उनसे मुलाकात की थी. दोनों साथ में ड्रिंक किया और खाना खाया. रात एक बजे वो सोने चले गए, तो मैं भी निकल गया. रात के तीन बजे गुरु दत्त ने अपने केयर टेकर रतन से पूछा कि अबरार कहां हैं? रतन ने बताया कि मैं लेखन सौंप के चला गया हूं. उसके बाद उन्होंने रतन से व्हिस्की मांगी, लेकिन उसने मना कर दिया. इसके बाद उन्होंने खुद बोतल उठाई और कमरे में चले गए. उसके बाद क्या हुआ किसी को नहीं पता है. अगले दिन उनका शव मिला था.” (आईचौक)

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