ये सवाल लोगों को महीनों से बेचैन किए हुए हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले के पहले से. सवाल ये कि आख़िर व्लादिमीर पुतिन के दिमाग़ में क्या चल रहा है और वो क्या योजना बना रहे हैं? किसी के पास क्रेमलिन को लेकर कोई कांच की गेंद नहीं है, जिसमें देख कर भविष्यवाणी की
ये सवाल लोगों को महीनों से बेचैन किए हुए हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले के पहले से. सवाल ये कि आख़िर व्लादिमीर पुतिन के दिमाग़ में क्या चल रहा है और वो क्या योजना बना रहे हैं? किसी के पास क्रेमलिन को लेकर कोई कांच की गेंद नहीं है, जिसमें देख कर भविष्यवाणी की जाए, न ही पुतिन से किसी की सीधी बात है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने एक बार कहा था कि ‘मुझे व्लादिमीर पुतिन की आंखों में देखकर उनके बारे में पता चलता है.’ देखिए रूस और पश्चिम के बीच रिश्ते अब कहां हैं. तो क्रेमलिन के मुखिया के दिमाग़ को पढ़ना बेहद कठिन कार्य है. लेकिन ये कोशिश करना ज़रूरी है. शायद आज के समय में ये पहले से कहीं अधिक ज़रूरी है क्योंकि रूस ने हाल ही में परमाणु हथियारों की धमकी दी है. इसे लेकर बहुत कम संदेह है कि रूसी राष्ट्रपति दबाव में हैं. उनके यूक्रेन में तथाकथित “विशेष सैन्य अभियान” का नतीजा उनके लिए अब तक अच्छा नहीं रहा है. इस युद्ध के शुरू होने पर महज़ कुछ ही दिनों में ख़त्म हो जाने की उम्मीद थी, लेकिन अब क़रीब आठ महीने हो गए हैं और इसका अंत नज़र नहीं आ रहा. क्रेमलिन इस बात को स्वीकार रहा है कि उसकी सेना को हारना पड़ा है, बीते कुछ हफ़्तों के दौरान रूस की सेना के हाथों से वो इलाके निकल गए जिस पर उसने इस युद्ध के दौरान क़ब्ज़ा किया था.
सैनिकों की संख्या बढ़ाने के लिहाज़ से राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने आंशिक तौर पर लामबंदी की घोषणा की. या कहें कि ये करने के लिए उन्हें बाध्य होना पड़ा, अन्यथा वो ऐसा नहीं करते. इस बीच, आर्थिक प्रतिबंध रूस की अर्थव्यवस्था को बदतर कर रहे हैं. लौटते हैं फिर पुतिन की सोच पर. क्या वो ऐसा सोच रहे होंगे कि उन्होंने ये सब ग़लत किया. क्या वो ये सोच रहे होंगे कि यूक्रेन पर हमला करने का फ़ैसला मूल रूप से ही ग़लत था? ऐसा नहीं लगता.
रूस के अख़बार नेज़ाविसिमाया गज़ेटा के मालिक और एडिटर-इन-चीफ़ कॉन्स्टैंटिन रेमचुकोव मानते हैं कि इस पूरे युद्ध की स्थिति को पुतिन की सोच ही संचालित कर रही है. उनके मुताबिक़, “वो परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र के एक दबंग नेता हैं. वो अपने देश के निर्विरोध नेता हैं. उनकी कुछ मज़बूत अवधारणाएं और समझ है जो उन्हें निरंकुश सा बना देती है. उन्होंने ये अवधारणा बना ली कि ऐसा करना उनके अस्तित्व के लिए अहम होगा. न केवल उनके लिए बल्कि रूस के भविष्य के लिए भी अहम होगा.” अगर यह लड़ाई अस्तित्व के लिए है तो राष्ट्रपति पुतिन इसे जीतने के लिए किस हद तक तैयार हैं? हाल के महीनों में रूस के वरिष्ठ अधिकारियों (पुतिन समेत) ने ये स्पष्ट संकेत दिया कि क्रेमलिन के प्रमुख इस युद्ध में परमाणु हथियार के इस्तेमाल की तैयारी कर रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने सीएनएन से कहा, “मुझे नहीं लगता कि वो ऐसा करेंगे. लेकिन मुझे लगता है कि इस बारे में बात करना उनके लिए ग़ैर ज़िम्मेदाराना है.”
इस हफ़्ते रूस ने यूक्रेन पर जो लगातार बमबारी की है वो कम से कम ये तो बताती ही है कि रूस इस युद्ध को और बढ़ाना चाहता है. वरिष्ठ लिबरल राजनेता ग्रिगोरी यवलिंस्की मानते हैं, “वो पश्चिम के साथ सीधे टकराव से बचने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन साथ ही वो इसके लिए तैयार भी हैं. किसी भी परमाणु संघर्ष की संभावना को लेकर सबसे अधिक लोग भयभीत हैं. इसके साथ ही अंतहीन युद्ध का भी डर है.” लेकिन अंतहीन युद्ध के लिए अंतहीन संसाधन चाहिए होंगे, जो कि लगता नहीं कि रूस के पास हैं. यूक्रेन के शहरों पर एक साथ कई मिसाइलों के हमले रूस की ताक़त का प्रदर्शन है, लेकिन सवाल ये है कि वो कब तक ऐसा कर सकेगा?
रेमचुकोव कहते हैं, “क्या आप इसी तरह से मिसाइलें दागना कई दिनों, हफ़्तों, महीनों तक जारी रखेंगे? कई विशेषज्ञ मानते हैं कि रूस के पास इतने मिसाइल नहीं हैं. साथ ही सेना के दृष्टिकोण से, किसी ने आज तक ये नहीं कहा कि ये (रूस की) एक बड़ी जीत के लक्षण हैं. जीत का संकेत क्या होता है? 1945 में बर्लिन के ऊपर एक बैनर लगा था. कीएव के ऊपर भी (एक बैनर)? या खेरसोन के ऊपर? नहीं पता, किसी को भी नहीं मालूम.” ये भी नहीं पता कि क्या व्लादिमीर पुतिन को भी ये पता है या नहीं.
फ़रवरी की स्थिति में लौटते हैं, तब क्रेमलिन का यूक्रेन को जल्द से जल्द हरा देने का लक्ष्य था और वो अपने इस पड़ोसी को बग़ैर लंबी लड़ाई के अपनी परिधि में ले आना चाहता था. उसका ये आकलन ग़लत निकला. रूस ने यूक्रेन की सेना और वहां के लोगों की दृढ़ता को कमतर आंका और अपनी सेना की क्षमताओं को कहीं अधिक माना था.अब वे क्या सोच रहे हैं? क्या व्लादिमीर पुतिन की वर्तमान योजना यूक्रेन की सीमाओं पर नियंत्रण करके उन पर क़ब्ज़े के बाद इस युद्ध को समाप्त करने की है? या पूरे यूक्रेन को ही रूस की परिधि या प्रभाव में लाने की उनकी मंशा है? इस हफ़्ते रूस के पूर्व राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव ने लिखा, ‘यूक्रेन अपनी वर्तमान स्थिति में… रूस के लिए लगातार, सीधे और स्पष्ट ख़तरा है. लगता है रूस का लक्ष्य यूक्रेन के राजनीतिक शासन के पूरी तरह ख़ात्मे का होना चाहिए.’
अगर मेदवेदेव के शब्द रूसी राष्ट्रपति की सोच को दर्शाते हैं तो एक लंबे और ख़ूनी संघर्ष की अपेक्षा की जा सकती है. लेकिन देश के बाहर उठाए गए पुतिन के क़दमों का नतीजा उन्हें अपने घर पर भी भुगतना पड़ रहा है. पिछले कई सालों में क्रेमलिन ने पुतिन की इमेज “मिस्टर स्टेबिलिटी” यानी स्थायित्व लाने वाले की तरह पेश की है, उनकी कोशिश रही है कि रूस के लोग इस बात पर विश्वास करें कि जब तक कमान पुतिन के हाथ में है, वो सुरक्षित हैं. लेकिन अब लोगों को ये विश्वास दिलाना मुश्किल हो रहा है. रेमचुकोव कहते हैं, “पहले पुतिन और लोगों के बीच कॉन्ट्रैक्ट था कि मैं आपकी रक्षा करूंगा. कई सालों तक मुख्य स्लोगन था ‘प्रेडिक्टिब्लिटी’ यानी पूर्वानुमान. अब किस तरह का पूर्वानुमान बचा है? ये कॉन्सेप्ट ख़त्म हो चुका है. किसी भी चीज़ का पूर्वानुमान मुमकिन नहीं है. कई पत्रकारों को भी नहीं पता कि कहीं घर लौटते ही उन्हें सेना से जुड़ने का फ़रमान न मिल जाए.”
पुतिन का यूक्रेन पर हमला करना कई लोगों के लिए हैरानी की बात थी. लेकिन यावलिन्स्की के लिए नहीं. वो कहते हैं, “मुझे लगता है कि पुतिन इस दिशा में आगे बढ़ रहे थे – जो अभी हो रहा है, साल दर साल उसकी तैयारी वो कर रहे थे. उदाहरण के लिए, स्वतंत्र मीडिया को ख़त्म करना. उन्होंने ये काम 2001 में शुरू कर दिया था. स्वतंत्र बिज़नेस घरानों को बर्बाद करना. उन्होंने 2003 में इसकी कोशिश शुरू की थी. इसके बाद 2014 में क्राइमिया और दोनबास में जो हुआ, अगर आप ये नहीं देख पा रहे थे तो आप अंधे हैं. हमारा सिस्टम ही रूस की प्रॉब्लम है. एक सिस्टम जिसने ऐसे व्यक्ति (पुतिन) को बनाया. इस सिस्टम को बनाने में पश्चिम की एक अहम भूमिका रही है. दिक़्क़त ये है कि ये सिस्टम एक सोसायटी नहीं बना पाया. रूस में बहुत सारे अच्छे लोग हैं. लेकिन एक सिविल सोसायटी नहीं है. इसलिए रूस में इसका विरोध नहीं हो पा रहा है.”
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