युद्ध के ख़िलाफ़ शान्ति निर्माण में महिलाओं की पहलकदमी अभी धीमी रफ्तार में

युद्ध के ख़िलाफ़ शान्ति निर्माण में महिलाओं की पहलकदमी अभी धीमी रफ्तार में

संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद ने पिछले दिनों सुरक्षा परिषद में कहा कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना और वृहत्तर समावेश को बढ़ावा देना, शान्ति व स्थिरता के लिये एक साबित रणनीति है. सुरक्षा परिषद ने सशस्त्र गुटों की सक्रियता वाले क्षेत्रों में, महिलाओं की सहनशीलता और नेतृत्व को, शान्ति के

संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद ने पिछले दिनों सुरक्षा परिषद में कहा कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना और वृहत्तर समावेश को बढ़ावा देना, शान्ति व स्थिरता के लिये एक साबित रणनीति है. सुरक्षा परिषद ने सशस्त्र गुटों की सक्रियता वाले क्षेत्रों में, महिलाओं की सहनशीलता और नेतृत्व को, शान्ति के एक मार्ग के रूप में प्रशस्त करने के उपायों पर विचार करने के लिये बैठक आयोजित की, जिसमें उप महासचिव ने ये बात कही. ये चर्चा, महिलाएँ, शान्ति और सुरक्षा मुद्दे परक, सुरक्षा परिषद के लगातार जारी ध्यान के तहत आयोजित की गई, जोकि 22 वर्ष पहले अपनाए गए एक प्रस्ताव के अनुरूप है. यही मुद्दा, संयुक्त राष्ट्र की नवीनतम रिपोर्ट के केन्द्र में भी है.
उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद ने कहा, “जब हम समावेश और शिरकत के लिये, दरवाज़े खोलते हैं, तो हम युद्धों की रोकथाम और शान्तिनिर्माण की दिशा में, एक बहुत बड़ी बढ़त करते हैं. मगर इस बारे में दशकों के सबूत उपलब्ध होने के बावजूद कि लैंगिक समानता से, टिकाऊ शान्ति व संघर्ष रोकथाम का रास्ता निकलता है, हम उलटी दिशा में ही बढ़ रहे हैं.” वह कहती हैं कि हर स्तर पर महिलाओं की भागेदारी ने, पिछले दो दशकों के दौरान, शान्ति व सुरक्षा के लिये अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का रुख़ व तरीक़ा बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. अलबत्ता प्रगति बहुत धीमी रही है, जैसाकि आँकड़ों से नज़र आता है. मिसाल के तौर पर, 1995 और 2019 के दरम्यान, लैंगिक समानता वाले प्रावधानों वाले शान्ति समझौतों की संख्या 14 से बढ़कर, 22 प्रतिशत हुई. पाँच में से चार शान्ति समझौतों में, अब भी लैंगिक पहलू की अनदेखी होती है. उससे भी ज़्यादा, इस अवधि के दौरान, औसतन 13 प्रतिशत शान्तिवार्ताओं में, महिलाएँ शामिल रहीं, छह प्रतिशत मध्यस्थकार रहीं हैं, और प्रमुख शान्ति प्रक्रियाओं में छह प्रतिशत हस्ताक्षर कर्ता रहीं.
यूएन उप महासचिव ने कहा, “शान्ति प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागेदारी और, उन्हें प्रभावित करने वाले निर्णयों में उनका प्रभाव, अब भी बहुत पीछे है, जिससे समावेशी, स्थाई और टिकाऊ शान्ति के लिये अब भी एक बड़ी और वास्तविक बाधा उत्पन्न हो रही है. हमें इससे बेहतर कार्रवाई करनी होगी. और हमें कार्रवाई अभी करनी होगी.” उप महासचिव आमिना जे मोहम्मद ने कार्रवाई की ज़रूरत को रेखांकित करते हुए, और ज़्यादा महिला शान्ति वार्ताकारों और मध्यस्थकारों को आगे बढ़ाने पर ज़ोर दिया. इसमें ऐसे पित्रसत्तात्मक चलन को ख़त्म करना भी शामिल है जिसमें महिलाओं को शक्ति से दूर रखा जाता है. साथ ही, वृहत्तर और ज़्यादा विश्वसनीय वित्त सुनिश्चित किया जाना भी ज़रूरी है. उन्होंने याद करते हुए कहा कि यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने, महिला अधिकारों के पर अगले दशक के लिये, पाँच रूपान्तरकारी कार्रवाइयों को रेखांकित किया है, और देशों से उन पर तेज़ी से अमल करने पर भी ज़ोर दिया है.
आमिना जे मोहम्मद ने सुरक्षा परिषद में कहा, “यूएन प्रमुख ने महिला मानवाधिकार पैरोकारों को सुरक्षा मुहैया कराने पर विशेष ध्यान दिये जाने का आग्रह किया है, जो बढ़ते ख़तरों, बदले की कार्रवाइयों और हिंसा का सामना करती हैं. ये साहसी महिलाएँ, महिलाओं, शान्ति और सुरक्षा एजेंडा के अग्रिम मौर्चे पर हैं.” महिला कल्याण के लिये सक्रिय यूएन एजेंसी – UN Women की कार्यकारी निदेशिका सीमा बहौस ने अपने सम्बोधन में, महिला मानवाधिकार पैरोकारों की तकलीफ़ों का सन्दर्भ दिया जिन्हें अपने समुदायों व पृथ्वी की ख़ातिर, अपने जीवन ही दाँव पर लगाने पड़ते हैं. सीमा बहौस ने कहा कि यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) ने हाल ही में ख़बर दी थी कि गत वर्ष संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग करने के लिये, प्रताड़ना का सामना करने के लगभग 350 मामलों में से, 60 प्रतिशत मामले महिलाओं से सम्बन्धित थे.
यूएन वीमैन के सर्वेक्षण में ये भी दिखाया गया है कि सिविल सोसायटी की जिन महिला प्रतिनिधियों ने सुरक्षा परिषद में अपनी बात कही है, उनमें से लगभग एक तिहाई को उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है. सीमा बहौस ने महिला मानवाधिकार पैरोकारों और उनके संगठनों को लिये, भौतिक व राजनैतिक सहायता मुहैया कराने जैसे उपाय किये जाने की पुकार भी लगाई है. उन्होंने कहा कि अगर ये सोचा जाता है कि महिलाओं को हाशिये पर रखने से उन्हें सुरक्षित रखने में मदद मिलती है तो, ये स्पष्ट रूप में समझा जाना चाहिये, कि दरअसल उसका उलटा होता है. महिलाओं को सुरक्षा कारणों से, उपयुक्त स्थान, पहुँच और वित्त से दूर रखने के कारण, उन पर अत्याचार करने वालों का हौसला बढ़ता है, और उनकी नज़र में, उनकी गतिविधियों सही ठहरती हैं.

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